फर्जी डिग्री वाले अध्यापक को नियमित करने व चयन वेतनमान देने वाले शिक्षा विभाग के सभी अधिकारियों की जांच का निर्देश

–कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाबदेही तय कर तीन माह में मांगी रिपोर्ट

–अध्यापक की बर्खास्तगी पर रोक, उसके अध्यापन कार्य में अवरोध उत्पन्न न करने का निर्देश

–कोर्ट ने कहा सभी को प्राप्त है संविधान का समान संरक्षण

प्रयागराज, 06 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माध्यमिक शिक्षा निदेशक के एल टी अध्यापक की बर्खास्तगी आदेश पर रोक लगा दी है। अध्यापक को फर्जी बी एड अंकपत्र के आधार पर नियुक्ति पाने का दोषी करार देते हुए उसे बर्खास्त कर दिया गया था।

कोर्ट ने राज्य सरकार को 1993 मे तदर्थ नियुक्त अध्यापक को 2008 में नियमित करने और 2015 में चयन वेतनमान देने वाले शिक्षा विभाग कुशीनगर के सभी अधिकारियों के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया है और अधिकारियों की जवाबदेही तय कर तीन माह में रिपोर्ट मांगी है।

कोर्ट ने कहा है कि फर्जी अंकपत्र वाला व्यक्ति सरकारी धन से कैसे नियुक्त किया गया। दस्तावेज का सत्यापन नियमित सेवा में लेने के समय ही किया जाना चाहिए था। ऐसा क्यों नहीं किया गया।

कोर्ट ने निदेशक के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा है कि याची के अध्यापन कार्य में किसी प्रकार का अवरोध उत्पन्न न किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने जनता इंटर कालेज रामकोला, कुशीनगर कृषि अध्यापक अशोक कुमार सिंह की याचिका पर दिया है।

मालूम हो कि याची एल टी ग्रेड कृषि अध्यापक पद पर तदर्थ रूप में 6 मार्च 93 को नियुक्त किया गया और क्षेत्रीय समिति ने 15 सितम्बर 08 को सेवा नियमित कर दी। 9 नवम्बर 15 को चयन वेतनमान दिया गया। 8 सितम्बर 20 को जिला विद्यालय निरीक्षक को पता चला कि प्रथम दृष्टया याची ने बीएड की फर्जी अंकपत्र के आधार पर नियुक्ति प्राप्त की है। निरीक्षक ने एडीएम की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की। कमेटी को याची ने आरोपों को निराधार बताते हुए जवाब दिया। निरीक्षक ने डिग्री फर्जी मानते हुए नियुक्ति को अवैध करार दिया और वेतन भुगतान रोक दिया। एफ आई आर भी दर्ज कराई गई। जिसे चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने निरीक्षक के आदेश पर रोक लगा दी और जवाब मांगा।

आदेश का पालन नहीं किया गया तो याची ने अवमानना याचिका दायर की। नोटिस जारी होने पर माध्यमिक शिक्षा निदेशक ने धारा 16ई(10) के अंतर्गत कार्यवाही शुरू की। याची ने जवाब दिया कि उसकी नियुक्ति बीएससी कृषि डिग्री के आधार पर की गई थी। फर्जी डिग्री के आरोपों से इंकार किया। सुनवाई के दिन याची की पत्नी बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती थी। उसने निदेशक को इसकी सूचना दी। इसके बाद दुबारा बुलाये बगैर याची की सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया गया। जिसे चुनौती दी गई है।

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 का सभी को समान संरक्षण प्राप्त है। एक लोक सेवक से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि दस्तावेज का सत्यापन किये बगैर सेवा नियमित कर देगा। डी आई ओ एस सहित शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारी की भी जवाबदेही है। चयन वेतनमान देने वाले अधिकारियों की भी जवाबदेही है। विभागीय जांच की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा सेवा नियमित करने से लेकर चयन वेतनमान देने तक की जांच होनी चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार/आर.एन

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